अन्ना हज़ारे उर्फ आम आदमी
कब तलक मरता रहेगा आम आदमी ।
क्या अभी भी जी उठेगा आम आदमी ?
घुट घुट के मरता है ये आम आदमी ।
दिन रात तड़पता है ये आम आदमी ।
महंगाई , लुच्चापन , भ्रष्टाचार , घूस ।
इस हाल मे भी जी रहा है आम आदमी ?
राजघाट से आई है उम्मीद की किरण ।
उस ओर झपट पहुंचा है यह आम आदमी ।
दर्दे - हुकूमत जरा मनमोहन से पूछिये ।
लगता है गले आ पड़ा है आम आदमी ।
ये भूख , ये लाचारी ,ये लुटती अस्मतें ।
क्या खूब सह रहा है ये आम आदमी ।
अन्ना की बात लोगों के दिल में धंस गयी ।
सड़को पे आ खड़ा हुआ है आम आदमी ।
जिल्लत भरी जिंदगी है जीने को मजबूर ।
शोले दबाये बैठा है ये आम आदमी ।
तरकस में तीर और न तलवार हाथ में ।
अनशन किए पड़ा है ये आम आदमी ।
लहलहाती खेतियाँ बिल्डर को बेच दीं ।
अब खाली कब्र ढूंढता है आम आदमी ।
सरकार के रहमो - करम पे जी रहे हैं लोग ।
कहते हैं सरफिरा हुआ है आम आदमी ।
हुक्काम सभी चूसते हैं बेबसी का खून ।
अब दर्द से कराहता है आम आदमी ।
आमो - फहम में हो रही पुर ज़ोर गुफ्तगू ।
मौका है खास मांग ले हक आम आदमी ।
ये जलवा , ये जोश , ये जुनून किस कदर ।
ये हुजूम तू ही देख क्या है आम आदमी ।
ये सच है की भ्रष्ट है जमाते - हुक्कामी ।
तू भी तो दिल मे झांक ऐ ! आम आदमी ।
खुद सुधर , सब सुधरें , इंकलाब आ गया ।
आने वाले कल की सोच आम आदमी ।
“ चन्द्रशेखर बाजपेयी “