सोमवार, 22 अगस्त 2011



अन्ना हज़ारे उर्फ आम आदमी


कब तलक मरता  रहेगा आम आदमी ।
क्या अभी भी जी उठेगा आम आदमी ?

घुट घुट के मरता है ये आम आदमी ।
दिन रात  तड़पता है ये आम आदमी ।

महंगाई ,  लुच्चापन , भ्रष्टाचार , घूस
इस हाल मे भी जी रहा है आम आदमी ?

राजघाट से आई है उम्मीद की किरण ।
उस ओर झपट पहुंचा है यह आम आदमी ।

दर्दे - हुकूमत जरा मनमोहन से पूछिये  
लगता है गले आ पड़ा  है आम आदमी ।

ये भूख , ये लाचारी ,ये लुटती अस्मतें
क्या खूब सह रहा है ये आम आदमी ।

अन्ना की बात लोगों के दिल में धंस गयी ।
सड़को  पे आ खड़ा हुआ है आम आदमी ।

जिल्लत भरी जिंदगी  है जीने को मजबूर ।
शोले दबाये बैठा है ये आम आदमी ।

तरकस में तीर और न तलवार हाथ में ।
अनशन किए पड़ा है ये आम आदमी ।

लहलहाती खेतियाँ बिल्डर  को बेच दीं
अब खाली कब्र ढूंढता  है आम आदमी ।

सरकार के रहमो - करम पे जी रहे हैं लोग ।
कहते हैं सरफिरा हुआ है आम आदमी ।

हुक्काम सभी चूसते हैं बेबसी का खून ।
अब दर्द से कराहता है आम आदमी

आमो - फहम में हो रही पुर ज़ोर गुफ्तगू ।
मौका है खास मांग ले हक आम आदमी ।

ये जलवा , ये जोश , ये जुनून किस कदर ।
ये हुजूम तू ही  देख  क्या है आम आदमी ।

ये सच है की भ्रष्ट है जमाते - हुक्कामी ।
तू भी तो दिल मे झांक ऐ ! आम आदमी ।

खुद सुधर , सब सुधरें , इंकलाब आ गया ।
आने वाले कल की सोच आम आदमी ।


                                                   चन्द्रशेखर बाजपेयी